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एक एक देख्यो सकल घट
एक-एक देख्यो सकल घट, जैसे चंद की छांह।वैसे जानो काल जग, एक-एक सब मांह॥
संत शिवनारायण
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
एक सीस चहुं सीस पुनि
एक सीस चहुं सीस पुनि, पंच सीस षट सीस।दश सिर और सहस्त्र सिर, नमत सकल जगदीस॥
सुंदरदास
और अरिस्या विरह दुख
और अरिस्या विरह दुख, हिलग अग बड़ दोई।सिखी धूम्र औ ताप बिन, जिमि कहु कदा न होइ॥
दयाराम
एक चित्त कोउ एक बय
एक चित्त कोउ एक बय, एक नैह इक प्राण।एक रूप इक वेश ह्वै, क्रीड़त कुँवर सुजान॥
बाल अली
इक अगी बिनु कारनहिं
इक अगी बिनु कारनहिं, इक रस सदा समान।गनै प्रियहि सर्वस्व जो, सोई प्रेम प्रमान॥
रसखान
इक बाहर इक भीतर
इक बाहर इक भीतर, इक मृद दुहु दिसि पूर।सोहत नर जग त्रिविधि ज्यों, बेर बदाम अँगूर॥
दीनदयाल गिरि
कुलहि प्रकासै एक सुत
कुलहि प्रकासै एक सुत, नहिं अनेक सुत निन्द।चन्द एक सब तम हरै, नहिं उड़गन के वृन्द॥
दीनदयाल गिरि
और सकल अघ-मुचन कौ
और सकल अघ-मुचन कौ, नाम उपायहिं नीक।भक्त-द्रोह कौ जतन नहिं, होत बज्र की लीक॥